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टैटू की दुनिया: प्राचीन परंपरा से आधुनिक फैशन तक

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टैटू का ऐतिहासिक सफर

टैटू का इतिहास और रोचक तथ्य

टैटू का इतिहास: मानव सभ्यता के साथ-साथ शरीर पर कला की परंपरा भी विकसित हुई है। टैटू केवल एक फैशन स्टेटमेंट नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, धार्मिक विश्वास, सामाजिक परंपराएं और व्यक्तिगत भावनाओं का प्रतीक है। इसे विशेष उपकरणों जैसे सुई, हड्डी या धातु की नोक से त्वचा पर उकेरा जाता है। आज के समय में टैटू आधुनिक जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके पीछे हजारों सालों का इतिहास और दिलचस्प कहानियाँ छिपी हुई हैं। आइए जानते हैं टैटू का इतिहास।


टैटू शब्द की उत्पत्ति टैटू शब्द की उत्पत्ति

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'टैटू' शब्द पॉलिनेशियन भाषा के 'Tatau' से लिया गया है, जिसका अर्थ 'लाइनें' या 'निशान बनाना' है। यह परंपरा ताहिती और पॉलिनेशियन द्वीपों की प्राचीन संस्कृति से जुड़ी है। 18वीं शताब्दी में जब कैप्टन जेम्स कुक और उनके साथी इन द्वीपों पर पहुंचे, तो उन्होंने वहां के लोगों के शरीर पर बने टैटू देखे और इस शब्द को यूरोप तक पहुंचाया। इसके बाद टैटू की यह कला पूरी दुनिया में फैल गई। पॉलिनेशियन संस्कृति में टैटू केवल सजावट नहीं था, बल्कि यह पहचान, सामाजिक दर्जे और आध्यात्मिक प्रतीकों का भी प्रतिनिधित्व करता था।
प्राचीन सभ्यताओं में टैटू प्राचीन सभ्यताओं में टैटू

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टैटू का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और लगभग हर प्राचीन सभ्यता में इसका उल्लेख मिलता है।

मिस्र की सभ्यता में टैटू का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व था। कई ममियों पर टैटू के निशान मिले हैं, जैसे 'आमुनट' नाम की ममी, जिस पर ज्यामितीय डिज़ाइन बने थे। माना जाता था कि टैटू बुरी आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस तथ्य की पुष्टि पुरातात्विक खोजों से होती है।

भारत में टैटू को 'गोदना' कहा जाता है। आदिवासी समाजों जैसे गोंड, भील और संथाल में यह परंपरा बहुत पुरानी है। गोदना केवल सजावट के लिए नहीं बल्कि सामाजिक और धार्मिक पहचान का प्रतीक भी रहा है। खासकर महिलाएँ अपने चेहरे और बाहों पर गोदना बनवाती थीं ताकि मृत्यु के बाद भी उनकी पहचान बनी रहे।

जापान में टैटू कला को 'इरिज़ुमी' कहा जाता है। इसकी शुरुआत हजारों साल पहले हुई थी। यहाँ टैटू धार्मिक कथाओं और प्राकृतिक दृश्यों को दर्शाते थे। हालांकि बाद में जब याकूजा गिरोहों ने इसे अपनाया तो इसकी छवि नकारात्मक हो गई।

चीन में प्राचीन काल में टैटू को अच्छा नहीं माना जाता था। यहाँ अपराधियों को सज़ा के रूप में टैटू बनवाए जाते थे, ताकि उन्हें आसानी से पहचाना जा सके। हालांकि कुछ जनजातीय समुदायों ने टैटू को अपनी पहचान और सुरक्षा का प्रतीक भी माना।

पॉलिनेशियन और माओरी संस्कृति में टैटू की परंपरा बहुत खास रही है। माओरी समाज में 'Ta moko' टैटू उनकी पहचान, सामाजिक स्थिति और जीवन की कहानी को दर्शाते थे। ये टैटू केवल सजावट नहीं बल्कि व्यक्ति के जीवन और सम्मान का दस्तावेज़ माने जाते थे।


मध्यकालीन और औपनिवेशिक युग में टैटू मध्यकालीन दौर में टैटू

मध्यकालीन यूरोप में टैटू का चलन कम हो गया था क्योंकि ईसाई धर्म में इसे पाप और ईश्वर के खिलाफ माना जाता था। फिर भी क्रूसेड युद्धों के समय कई सैनिक अपने शरीर पर क्रॉस जैसे धार्मिक चिन्ह टैटू के रूप में बनवाते थे, ताकि मृत्यु के बाद उन्हें ईसाई कब्रिस्तान में दफनाया जा सके। उस दौर में टैटू केवल सजावट नहीं बल्कि धार्मिक आस्था और पहचान का प्रतीक था। कई यूरोपीय तीर्थयात्री भी पवित्र भूमि (होली लैंड) की यात्रा का प्रमाण दिखाने के लिए टैटू बनवाते थे। इस तरह टैटू को भक्ति, विश्वास और आत्म-पहचान का हिस्सा माना जाता था।

औपनिवेशिक युग और टैटू का प्रसार

18वीं शताब्दी में जब यूरोपीय नाविक जैसे कैप्टन जेम्स कुक, पॉलिनेशियन द्वीपों पर पहुँचे तो उन्होंने वहाँ की टैटू परंपरा को देखा और प्रभावित हुए। इन नाविकों ने भी अपने शरीर पर टैटू बनवाए और जब वे यूरोप लौटे तो इस कला को लोकप्रिय बना दिया। धीरे-धीरे टैटू की यह प्रथा अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों तक फैल गई। पॉलिनेशियन टैटू केवल सजावट नहीं थे, बल्कि जीवन की घटनाओं और सांस्कृतिक प्रतीकों को दर्शाते थे। ईसाई मिशनरियों के विरोध और पाबंदियों के बावजूद यह कला अपनी अलग पहचान बनाए रही और आधुनिक समय तक जीवित रही।


भारत में टैटू का सफर भारत में टैटू का सफर

भारत में टैटू को पारंपरिक रूप से 'गोदना' कहा जाता है। आदिवासी समाजों जैसे गोंड, भील, उरांव और संथाल में महिलाएँ अपने चेहरे, हाथ और गले पर गोदना बनवाती थीं। यह उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक स्थिति का अहम हिस्सा होता था। उत्तर भारत के कुछ तीर्थस्थलों पर लोग भगवान के नाम का गोदना बनवाते थे, जो भक्ति और आस्था का प्रतीक माना जाता था। ग्रामीण भारत में गोदना केवल सजावट ही नहीं बल्कि स्त्रियों के श्रृंगार और सौंदर्य का हिस्सा था। आज शहरी क्षेत्रों में टैटू एक फैशन और व्यक्तित्व दिखाने का तरीका बन गया है, लेकिन इसकी जड़ें अब भी हमारी परंपरा से जुड़ी हैं।


आधुनिक युग में टैटू आधुनिक युग में टैटू

20वीं शताब्दी में टैटू की छवि बदलने लगी। पहले इसे सिर्फ नाविकों, सैनिकों और अपराधियों से जोड़ा जाता था लेकिन समय के साथ यह फैशन और व्यक्तित्व की पहचान बन गया। बॉलीवुड और हॉलीवुड सितारों ने टैटू को ग्लैमर और स्टाइल से जोड़ दिया, जिससे यह आम लोगों के बीच और भी लोकप्रिय हो गया। आधुनिक तकनीक और टैटू मशीनों के आने से अब रंग-बिरंगे और जटिल डिज़ाइन आसानी से बनाए जा सकते हैं। आज टैटू सजावट के साथ लोगों की भावनाओं, यादों और सोच को व्यक्त करने का एक खास तरीका बन चुका है।


टैटू का धार्मिक और सामाजिक महत्व टैटू का धार्मिक और सामाजिक महत्व

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टैटू का इस्तेमाल अलग-अलग सभ्यताओं में अलग उद्देश्यों के लिए किया जाता था। कई जगहों पर इसे धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति से जोड़ा गया, जैसे मिस्र और पॉलिनेशियन संस्कृति में टैटू देवी-देवताओं की कृपा पाने और आत्मा की रक्षा के लिए बनाए जाते थे। वहीं कई जनजातियों और समाजों ने टैटू को पहचान और सामाजिक दर्जे का प्रतीक माना। माओरी और जापानी परंपरा में यह साहस, युद्ध कौशल और बलिदान का चिन्ह था। लेकिन हर जगह इसका सकारात्मक अर्थ नहीं था। प्राचीन चीन, ग्रीस और रोम जैसे समाजों में अपराधियों और गुलामों को टैटू बनवाकर अपमानित और पहचान योग्य बनाया जाता था।
टैटू के प्रकार टैटू के प्रकार

Tribal Tattoo - आदिवासी कला और पारंपरिक ज्यामितीय डिजाइनों से प्रेरित होते हैं। यह शैली आज भी बहुत लोकप्रिय है।

Religious Tattoo - देवी-देवताओं, धार्मिक प्रतीकों, मंत्रों आदि को लेकर बनाए जाते हैं जिनका आध्यात्मिक महत्व होता है।

Portrait Tattoo - यह प्रियजनों या किसी सेलिब्रिटी के चेहरे की सजीव प्रतिकृति होती है, जो विशेष व्यक्तिगत संबंध दर्शाती है।

Abstract Tattoo - आधुनिक कला, ज्यामिति और कल्पनाशील डिजाइनों से प्रेरित होते हैं, जिन्हें अभिव्यक्तिपूर्ण और अनूठा माना जाता है।

Temporary Tattoo - ये ऐसे टैटू होते हैं जो कुछ समय बाद फीके पड़ जाते हैं या हटाए जा सकते हैं, आमतौर पर बच्चों और फैशन टूरिस्टों के बीच लोकप्रिय हैं।


टैटू से जुड़ी मान्यताएँ और विवाद टैटू से जुड़ी मान्यताएँ और विवाद

कई जगहों पर टैटू को अंधविश्वास और अशुभ माना जाता है। भारत में कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरीर पर देवी-देवताओं के नाम या चित्र बनवाना गलत माना जाता है, क्योंकि इसे उनके अपमान की तरह देखा जाता है। यह सोच खासकर पुरानी पीढ़ी में ज्यादा प्रचलित रही है। जापान और चीन जैसे देशों में भी लंबे समय तक टैटू को अपराधियों और अपमान के प्रतीक के रूप में देखा गया। भारत में भी बुजुर्ग इसे परंपरा की नज़र से देखते हैं, जबकि युवा पीढ़ी इसे फैशन और आत्म-अभिव्यक्ति का हिस्सा मानती है। इस तरह टैटू को लेकर सोच अलग-अलग दिखाई देती है।


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